मंगलवार, 24 नवंबर 2009

ऐसा क्यों होता है


ऐसा क्यों होता है
किसी को
सब कुछ मिलता है
और कोई
कुछ पाने के लिये
जिंदिगी भर तरसता है

किसी को मिलती है
जिंदिगी के
हर मोड पर सफलताये
और कोई
विफलता का दमन पाता है
और टूट जाता है,

अगर यह सब
भाग्य के कारण है
तो फिर
कर्म का कर्तव्य
किस के कारण है
जिंदिगी को इतनी आसान
न समझाना
काटो की डगर है,
सम्हल के चलना,
चड़ना और गिरना,
तो जिंदिगी का पाठयक्रम है,
पर
कोई चढ़ ही न सके,
तो फिर यह किस के कारण है,

जिंदिगी...
तो बस ऐसी ही चलती रहेगी
हर मोड़ पर
जीने की क़ज़ा देती रहेगी
इतना तरसेगा कुछ पाने के लिये
कि
कुछ खोने की आस ही न रहेगी,

प्यार, मोहब्बत, दया ,धरम
कर्तवय , सच्चाई ,इंसानियत,

आज कल की जिंदिगी मे
कभी-कभी
भरे पेट की बाते लगती है,
क्यों कि
कभी कभी
इन बातो को समझने वाला
दुनियादारी की नासमझी वाला
सब कुछ जानते हुई भी,
इन बातो पर चलता है
ऐसा क्यों होता है
ऐसा क्यों होता है