सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

यू ही ...कुछ लम्हे ...


(१)
यह चार दिनों की जिंदिगी...
जिस मे कुछ तुम्हारी यादे,
इक धरकता दिल..
न उम्मीदी की किरण,
और
इक अंतहीन इंतजार...

(२)
यह शायद प्यार ही था ...
जो आज भी खीच लाता है
उसकी
आँखों मे नमी का अहसास ..
किसी महफ़िल मे तेरा जिर्क
सुनने का बाद..

(३)
कुछ बरबादिया इस
कदर उसके दामन
मे आ बैठी
कि
बस तुम से दिल लगा बैठे
बाकी अपने आप मुकम्मल ही गयी..

(४)
क्यू गाहे बगाहे
पालते हो
यह हसरते
कि
उनके
इश्क का दीदार हो जाये
यह आजकल कि हवा है जानशी..
जो मुसल्मा को भी काफ़िर बना जाये ...

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

बदलाव


वोह भी क्या दिन थे
क़ि
उनके खासने की जरा सी आहट
उसकी सासों को गहरा जाती थी
कुछ अनहोनी की
आकांशा
दिल की धरकनो को
बढ़ा जाती थी
आज
यह हालात है
कि
अगल - बगल पड़े हुअ
एक छत के नीचे
अलार्म की घडी उनकी रूह को झन्झोडती है!

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

अपाहिज...



उनकी सिर्फ यही खता थी
कि
वोह उनको बेइन्तेहा
प्यार करते थे ,
उनसे
उनका कुछ दिल का रिश्ता था,
कभी-कभी
वोह
ऐसा कहा करते थे
पर
बदले मे
उनको
कुछ भी नसीब न हुआ
उसने उनकी चाहत को
कभी
संजीद से न लिया
क्यों कि
शायद
हर इकतरफा रिश्ता अपाहिज होता है

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

इत्तफाक....


कितना अजीब इत्तफाक है
कि
जब भी
तुम्हारी यादे
जेहन से
बार बार
टकरा कर
दिल को मायूस करती है
और
तुम से न
मिलने की उम्मीद
दिल को और तडपाती है
सचमुच
तभी मोबाइल पर
तुम्हारे नंबर की घंटी
सिर्फ यही समझाती है
कि
दिल से दिल को ही राहत होती है....

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

उम्मीद...


1)
अभी भी सहज कर रखे है
तुम्हारे
गिफ्ट, एस एम् एस
और साथ बिताये हुँई पलो की
यादो के मंजर

यह "ढाई अक्षरों" का शब्द
आज भी जिंदिगी को वीराना करता है.

2)
रोज सवेरे ..
सूरज के उजाले की
पहली किरण की
एक उम्मीद के साथ
वोह जीता है..
कि...
मिल जाओगी
तुम
कभी न कभी...
रात अंधरे
वोह इस उम्मीद को
कन्धे पर ढोते हुई
फिर लौट आता है

इसी उम्मीद का साथ...
सचमुच दो पलो का मिलन सदियों की पीड़ा सहता है ....

बुधवार, 6 जनवरी 2010

अपना अपना यथार्थ...


कल बहुत दिनों का बाद ३ idiots देखी.
लगता था की जिंदिगी कुछ साल पहले की रविन्द हो गयी
इंजीनियरिंग कॉलेज लाइफ, दोस्त, हॉस्टल सब कुछ एक जाना पहचाना सा लगा....
कुछ साल पहले सब दोस्त जिंदिगी का बारे मे सोचते थे ..सब आगे बढ़ना चाहते थे.
Life is a challenge .. face it .. ऐसा पढ़ा था ..
कुछ महीने पहले,
कुछ वेबसाइट जिन्होने खोया - पाया की दुकान चला रखी है,
उनपर खोजते हुई एक क्लोसे
दोस्त कम रूम मेट से रूबरू हो गया ..साथ मे उसका मेल id भी था..
सोचा , उसे मेल करते हुई , एक बड़ी कम्पनी मे बहुत senior पोस्ट पर पहुच गया है
इधर सा मेसेज भेजा .. सोच था भूल गया होगा पर उसका जबाब आया..
कैसा है...उसने पुछा ,
मैने कहा.. कि एक कंपनी मे अपने ही शहर मे जॉब कर रहा हूँ.
किस लेवल तक पहुच गया.. उसका सवाल था
मीडियम लेवल तक हूँ... घर की जिम्मेदारिया थी.. जयादा दूर तक नहीं जा पाया...छोटा भाई, सिस्टर, उनकी पढाई , शादी, , घर, पिताजी का रीतिअरेमेंट
कही विदेश वग्हरा भी नही गया... उधर से आवाज़ आई.
नहीं यार... अपनी ऐसी किस्मत कहा... आजकल तो प्लैन मे बठने कई भी बाँदै है..
यार. यही तो तुम्हारी कमजोरी है. ... कि अपने से जयादा दुसरो के बारे मे सोचते हो.. अपनी लाइफ..कर्रिएर.. कभी सोचा नहीं... घर के बारे मे ही सोचते रहे
मुझे देख
इंजीनियरिंग से निकल कर एक सीनिअर को पकड़ा...
कॉलेज के दिनों से ही उसे सलाम बजाने लगा था..
अपनी तरफ का था.
उस ने जॉब लगवा दी ...फिर गाडी चल पड़ी..
और शादी.. मैने पूछा.
अरे शादी तो खुद कर ली.. उसका जबाब था.
एक नौकरी मे , एक सुंदर सी पंजाबी लड़की , HR डिपार्टमेंट मे थी..
पटा ली..कुछ दिन ऐसा ही चला ,
उससे शाद्दी कर ली....
एक लड़की है अब..
बहुत सुंदर है मेरी बीवी ...
ह़ा, मैने सुना है..फ्रेंड सिर्क्ले मे चर्चा है.. मैने कहा.
आज सेनिओर मैनेजमेंट मे विदेश मे हूँ ... बड़ा घर... बड़ी गाडी.. खूब सैर सपाटा.. मौज है..
कभी जरुरत हो तो बताना.. अभी बीजी हूँ... मीटिंग मे हूँ..
अंकल कैसे है.. मैने पूछना चाहा..
पर उधर से फ़ोन कट गया था...
पर
उसके फ़ोन के बाद..ऑफिस मे मन सा नही लगा..

जिंदिगी बहुत साल पहले हॉस्टल पहुच गयी...
इंजीनियरिंग कॉलेज...हॉस्टल..वोह रूम्मेट ...
उसने कभी पढाई को seriously नहीं लिया था..
सिगरेट , शराब,लडकिया....मूवी ..
यही सब तो उसकी पसंद था ...खेल कूद ..क्लास बंक...
शायद...
कभी उसके पस्सिंग मार्क्स भी नहीं आता था..
थ्री सिस्टर्स..अकेला लड़का...मदर हेआर्ट पशिएन्त .. पिताजी इंजिनियर..
पर जिंदिगी के प्रति उसका साफ फलसफा था...
बी प्रक्टिकल...दून बी ईमोशिनल

और शायद इसी फलसफे की वजह से वोह यहाँ तक आ गया था.
और एक हम...
इंजीनियरिंग से निकले तो
पिताजी रीतिरेमेंट की कगार पर थे ..
सरकारी फ्लैट ख़ाली करना था..एक जमीन पिताजी ने अपनी नौकरी मे ले ली थी.
रीतिरेमेंट के पैसे से मकान बनाना था ..
छोटा भाई...जो मेडिकल मे सेलेक्ट हुआ था..
छोटी सिस्टर..जिसकी पढाई चल रही थी...
माँ की बीमारी..भाई बहन की पढई...पिताजी की बीमारी.. उनकी रीतिरेमेंट.
कब जिंदिगी जिम्मेदारियो को सिमटती आगे बढती गयी.. पता ही नहीं चला...
बड़ा शहर मे ..घर से दूर जा कर...ज्यादा पैसा कमाना की हिम्मत ही नहीं पड़ी...
एक बार एक इन्तर्वीओ के लिये मुंबई जा रहा था..पिताजी स्टेशन पर छोड़ने आयै थे ..
ठीक है बड़ी कंपनी है...पर दूर है...हो जाया तो ठीक पर ..बेटा..इधर ही जॉब लग जाय तो...अच्छा है..
अपने घर की तो कम पैसा भी ठीक थी....पर बच्चा निगाह से दिख तो जाता है.
और..

पर घर की गाडी तो पटरी पर आ गयी पर कर्रिएर की गाड़ी नहीं आ पाई...

सोचते सोचते घर आया गया..
गाड़ी पार्क करते हुई वाइफ ने पूछा,
बड़ी जल्दी आ गये ...आज क्या बात है ..
रोज तो १० बजा फ़ोन कर के बताना पड़ता है..
आज कुछ तबियत ठीक नहीं है.. मैने बात को टालना चाहा
ठीक है..कपडे बदल कर बैठो ... मै चाय लाती हूँ..
चाय पीते पीते ..मन को हल्का करने के लिये ,टीवी खोल कर बैठ गया...
चैनल बदलते- बदलते...एक चैनल पर शाहरुख़ खान का इन्तर्र्वीउ आ रहा था..
शाहरुख़ कह रहा था..
जिंदिगी मे इज्जत..शोहरत ..पैसा..बीवी..बंगला .. सब कुछ तो है..

पर अभी भी कुछ चीज खलती है..
इस सब को दखने माँ- बाप नहीं है ..
सब सुना ....और सोचा ..

अपना अपना यथार्थ...

सचमुच उस रात बहुत अच्छी नीद आई थी...

जिंदिगी कि मसरूफियत के चलते
माना कि जिंदिगी चलती जाती है
मत छूहो उन अन्छूई लम्हों को
यह ऐसी आग है जो ठहरे
पानी मे भी आग लगा देती है