गुरुवार, 1 सितंबर 2011

फिर वही.... ..याद आई


(1)
दिल ने
सब सिकवे गिले..
छोड़ के
फिर यही पुकारा ..
माना
कि
तुम्हारी निगाहों मे..
यह रिश्ता कुछ भी नहीं..
पर
कुछ के लिये
तो
यही कायनात है
और
शायद
इस लिये
आज का दिन उनके लिये
बहुत खास है...

(2)
आरजू
के
लफ्ज़ ओढ के
वोह
जिंदिगी के फलक पर
कतरा कतरा
युही रिसता रहा..
शायद
किसी मोड़ पर
जिंदिगी की सुबह
हो जाये

गुरुवार, 30 जून 2011

बारिशै ...


यह बारिशै भी कितनी अजीब है
जो
यहाँ वहा से आकर बैठ जाती है
वोह बारिश...
जब तुम इस जिंदिगी से निकल कर
नयी मंजिल को गयी थी..
कैसे इस रूह को भीगा के गयी थी.
पर..
आज
न जाने
कितने बरस के बाद भी..
इसी दिन..इसी समय
ऑफिस के
चौथे माले की
खिड़की से झाक कर देखा है
बारिशै आज भी है..

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

....और वैलेंनटाइन मन गया


तुमको देखा,
तुमको सोचा,
....और वैलेंनटाइन मन गया

एक चाहत थी कुछ तुमसे जानने की,
एक हसरत थी तुम्हारी निगाहों मे
अपने अस्क की,
उस चाहत को दबाता चला गया,
....और वैलेंनटाइन मन गया

महफ़िल मे तू रुसवा न हो,
बात दिल की जवा पर न आ जाये,
उन होठो को सिलता चला गया,
....और वैलेंनटाइन मन गया

गर कही वोह पढ़ लेगी लफ्ज़- ए- आरजू ,
इसलिय य़ूही कुछ लिखता चला गया,
....और वैलेंनटाइन मन गया