गुरुवार, 30 जून 2011

बारिशै ...


यह बारिशै भी कितनी अजीब है
जो
यहाँ वहा से आकर बैठ जाती है
वोह बारिश...
जब तुम इस जिंदिगी से निकल कर
नयी मंजिल को गयी थी..
कैसे इस रूह को भीगा के गयी थी.
पर..
आज
न जाने
कितने बरस के बाद भी..
इसी दिन..इसी समय
ऑफिस के
चौथे माले की
खिड़की से झाक कर देखा है
बारिशै आज भी है..

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