गुरुवार, 1 सितंबर 2011

फिर वही.... ..याद आई


(1)
दिल ने
सब सिकवे गिले..
छोड़ के
फिर यही पुकारा ..
माना
कि
तुम्हारी निगाहों मे..
यह रिश्ता कुछ भी नहीं..
पर
कुछ के लिये
तो
यही कायनात है
और
शायद
इस लिये
आज का दिन उनके लिये
बहुत खास है...

(2)
आरजू
के
लफ्ज़ ओढ के
वोह
जिंदिगी के फलक पर
कतरा कतरा
युही रिसता रहा..
शायद
किसी मोड़ पर
जिंदिगी की सुबह
हो जाये

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