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ankhaee
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
बदलाव
वोह भी क्या दिन थे
क़ि
उनके खासने की जरा सी आहट
उसकी सासों को गहरा जाती थी
कुछ अनहोनी की
आकांशा
दिल की धरकनो को
बढ़ा जाती थी
आज
यह हालात है
कि
अगल - बगल पड़े हुअ
एक छत के नीचे
अलार्म की घडी उनकी रूह को झन्झोडती है!
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मेरे बारे में
Vikas Bhatnagar
पेशे से इक multinational कंपनी मे प्रोफेशनल, पर दिल से इक इंसान ....
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