मंगलवार, 12 जनवरी 2010

उम्मीद...


1)
अभी भी सहज कर रखे है
तुम्हारे
गिफ्ट, एस एम् एस
और साथ बिताये हुँई पलो की
यादो के मंजर

यह "ढाई अक्षरों" का शब्द
आज भी जिंदिगी को वीराना करता है.

2)
रोज सवेरे ..
सूरज के उजाले की
पहली किरण की
एक उम्मीद के साथ
वोह जीता है..
कि...
मिल जाओगी
तुम
कभी न कभी...
रात अंधरे
वोह इस उम्मीद को
कन्धे पर ढोते हुई
फिर लौट आता है

इसी उम्मीद का साथ...
सचमुच दो पलो का मिलन सदियों की पीड़ा सहता है ....

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