मंगलवार, 11 अगस्त 2009

इन्तजार...



जब से तुम यह जहाँ
छोड़ के नयी दुनिया
मे गयी हों,
पर जानें अनजाने एक
अहसास दे गयी हो,
जो
हर पल साथ रहता है ,
शुक्रगुजार हूँ तुम्हारा
कि
कम से कम
यह अहसास तो मेरें पास है,
सिर्फ इस इन्तजार मे
कि
शांयद
तुम भी कही से कहोगी
हां
यह अहसास मेरी
धडकनो मे धडकता है
तुम से मिलूं या न मिलूं
पर मुझ को भी तनहा करता है
जाने अनजानें

मैनें भी महसूस किया है,
अपनी जिंदिगी के किसी कोने मे

उन लम्हों को जिया है
यदि ऐसा हुआ तो....
सारी क्यानांत खडी हो जायगी
इन धरकनो की नज्म फलक पे चमक जायगी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें