बुधवार, 15 जुलाई 2009

खामोशी...


(१)
कुछ लफ्ज़
जो मैंने खुदं ही
खोज लिए थे
तुम्हारी खामोशी
में ,

कुछ रिश्ते
जो मैंने खुदं ही
बुन लिए थे
तुम्हारी आँखों की चमक
में ,

कुछ सुर
जो मैंने खुदं ही सुन लिए थे
जो तुमने कहे हीं नहीं
थे

सचमुच...
यह
कभी कभी
के अच्छे
इत्ते फांक

अभी दफना के
लौटा हूँ

पर यह यादे
मेरी
नासमझी
पर हसतीं है


(२)
छोड़ कर
जब तुम
अपनी मंजिल की तरफ
जैसें जैसें
कदम
बढाओगें
कुछ यादे
हमारी जिंदगी के
साये से
लिपट-लिपट
कर सिर्फ यही पूछेगीं
कि बता
मेरी खता क्या है
मेरी खता क्या है

1 टिप्पणी:

  1. जो तुम खामोशी को,
    सुन, सोच और मानकर, कर रहे हो,
    उसकी मौन स्वीक्रति, उसने ही दी होगी,
    उसने सब जानते हुए, खामोशी से,
    तुमको उलाजगने दिया,
    खामोशी को दिल से हटा दो अपने,
    तुम्हारी ख़ाता यही है की,
    तुमने उस खामोशी से प्यार किया...

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