गुरुवार, 11 जून 2009

तेरा साथ - एक अहसास


तेरा साथ
एक अह्सास हेँ जीने के लिये,
तेरी आंखो में,
उमडता सागर ,
इक प्यास हेँ पीने के लिये,
क्यों पागल हेँ मन ऐसा करने को,
प्यार की परिकाषठा की,
उच्चतम सीमा तक ,
उच्चरित होने का आकांशी हें,

तुम से मिलना, फिर बिछडना ,
पल पल फिर मिलने की चाहत रखना ,
एक जज्बा हेँ महसूस करो तो,
कुछ ही पल मे ही क्यूं ,
वो अच्छा लगने लगता हँ,
एक अन्देखा , अंजाना चेहरा,
जाना पहचाना लगता हेँ ,

पर तुम्हारे साथ तो कितनी भवरै पड़ी हुई हेँ,
कितने बंधनो की समाजिक रेखा खिची हुई हँ,
पर बाबरा हँ मन
जो न जाने इन दीवारों को
क्या नाम दूं मै ,
इस रिश्ते का,
जो मेरा दिल से होकर,
तुम्हारी चौखट तक जाता हेँ,

नाम मिट जाते हेँ,
चेहरे बदल जाते हेँ,
पर धडकन का स्पंदन,
जीवन का रंग,
क्या बदल पाता हेँ,
जिंदिगी की तपती दुपहरी में,
भागती इस भीड़ में,
तुम्हारी मुस्कान एक शाख मरुस्थल मे लगती हेँ,

पर असंभव हेँ इस संसार में,
कुछ रिश्ते ऐसे होते हेँ,
जो महसूस तो किये जा सकता हे,
इन रिश्तो की कोई उम्र नहीं होती,
इन रिश्तो का कोई समय नहीं होता

कब बनते हें ,
कैसा बनते हेँ ,
पता ही नहीं चलता,
किसी के दिल मे पलते हेँ,
किसी की आंखो में,
रास्ते बिछुडं जाते हें
पर रिश्तो के निशाँ छोड़ जाते हें,

इस लिये,
धरती सदा आकाश को ताकती हें,
और आकाश सदा धरती को,
क्या मिल पाये,
पर चाहत ही ऐसा बंधन हें,
जो बंधे हुए हें दोनों को,
न मिल कर भी मिले हुए हें,
चाहो तो छितिज से पूछ लो,

यही जज्बा हें इन आंखो का,
चाहो तो महसूस करो तो....

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