सोमवार, 15 जून 2009

इक चाहत - इक जिन्दगी




ना दिन का चैन हें ना रातों की नींद हेँ,
हेँ तो बस तुम्हे पाने की जुस्तजू हेँ,
पल पल इक प्यारा सा अहसास हेँ,
दूर हो के भी तू मेरे दिल के पास हेँ,

हम क्या पता कि उन्हे भी कोई अहसास हेँ,
उनके भी दिल की ऐसी कोई प्यास हेँ,
इक बार देखा उनकी आँखों में तो पाया ,
उन्हें हम से ज्यादा अपने आप की तलाश हेँ,

कौन कहता हेँ कि जिंदिगी में अफसाने नहीं होंते,
किसी को चाहने के क्या , नये अंदाज़ नहीं होंते,
पर हमे इल्म तो यही हेँ कि,
उनकी चाहतों की दुनिया में,
हमारे दीदार नहीं होंते,

कहते हें दिल से दिल को राह होती हेँ,
उनकी इक मुस्कान से जिंदिगी आसान होती हेँ,
दो दिल जिन्दा रहे सकते हेँ चाहत भरी निगाहों से,
टुटा हुए दरक्थ को भी ज़मीं की तलाश होती हेँ,

इल्म = दुःख ,
दीदार = दिखाई देना,
दरक्थ = पेडं,
जुस्तजू = आरजू




चलते- चलते.....



कितने लोग हें जहाँ में जो आपके साथ को तरसते हें,
कितनी निगाहें हें जहाँ में जो आपकी इक निगाह को तरसती हें,
रंज होता हें उन्हे आपकी आँखों मे पडे सुरमे के नसीब पर ,
जो कम से कम आपकी आँखों मे तो रहा करता हें,

यह जिंदिगी के लम्हे भी कितने अजीब होते हें,
सब अपने अपने नसीब पर रोते हें,
जो अक्सर निगाहों से दूर होते हें शायद,
वही जिंदिगी में सबसे करीब होते हें,

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