बुधवार, 17 जून 2009

यादें... यादें... ..और यादें......



वों यादे,
बहुत याद आती हें,
वो कही भी ,कैसे भी,
सामने आकार खड़ी हो जाती हें,

वों रास्ते, वों गलियारे,
वों सुन्दर अन्तःमन , नयन कजरारे,
वों उनकी खिलखिलाती हुई हँसी,
वों उनकी शरमाई हुई मुस्कान,
वों अचानक आकार सामने खडे हो जाना,
और जाते हुए अपने जाने का अहसास देते हुए जाना,
वोह साथ में कभी कभी,
बाटँ कर काफी का पीना,
वों हर कदम को, हर हालात को,
आपस में बाँटना,
न कुछ दे कर भी बहुत कुछ देना,
न कुछ कह कर भी बहुत कुछ कहना,
ये सब मौजेँ आ कर ठहर जाती हें,
वों यादे,
बहुत याद आती हें,
वों यादे,
बहुत याद आती हें,

वों उनका साथ- साथ सिढ़िया उतरना,
और उनसे कुछ कहने की हिम्मत करना,
वों महसूस होते हुए दिल का धडकना,
वों कहते हुए होठों का सूखना,
वों आँखों मे नमी का अहसास होना ,
वों कुछ कहें, इस की उम्मीद करना,
यही सब यादे,
जिंदिगी को हिलाती हें,
वों यादे,
बहुत याद आती हें,
वों यादे,
बहुत याद आती हें,


वों उनका हमेशा अंजान बनना,
वों जिंदिगी की कुछ बातो पर,
दुनियादारी दिखाना,
"हमे क्या " कह कर दुनियादारी समझाना,
आँखों ही आँखों में सब कुछ कहना,
पर होठों से कुछ भी न कहना,
वों उनकी आँखों की चमक ,
बहुत कुछ समझाती हँ,
वों यादे,
बहुत याद आती हें,
वों यादे,
बहुत याद आती हें,

वों चलते चलते,
वों उनका अपनापन ,
कुछ कहने की कशिश ,
वों आँखों में नमी का अहसास ,
और अचानक चले जाना,
और पीछे पीछे ,
यादो के निशाँ छोड़ जाना,
जिंदगी जैसे थम सी जाती हें,
वों यादे,
बहुत याद आती हें,
वों यादे,
बहुत याद आती हें,


आज भी कभी रात में अचानक नीद छिटक कर कोसों दूर चली जाती हें,
और बीते हुए लम्हों की कसक आँखों में ठहर जाती हें,
और उनसे न मिलने की उम्मीद दिल को और तरसाती हें,
सचमुच उन पलो में उनकी बहुत याद आती हें,

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